बीसवीं शताब्दी के कृषक आन्दोलन एवं परिणाम

Authors

  • अदिति ठाकुर शोध छात्रा हिन्दी विभाग

Abstract

19वीं शताब्दी में कृषकों की अशान्ति विरोधों, विद्रोहों तथा प्रतिशोधों में प्रकट हुई जिनका मुख्य उद्देय सामन्तशाही बंधनों को तोड़ना था। उन्होंने भूमि भाटक बढ़ाने, बेदखली और साहूकारों की ब्याजखोरी के विरुद्ध विरोध प्रकट किया। उनकी मांगों से मौरूसी अथवा दखिलकार अधिकार और भाटक के रूप में अन्न के स्थान पर धन का निश्चित करना था। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में देश में बार-बार अकाल पड़े। इस काल में भारत के भिन्न- भिन्न भागों में 24 छोडे-बडे अकाल पड़े। सूखे तथा अकालों से ग्रामीण प्रदेशों की स्थिति बिगड़ती चली गई। अकालों से यह स्पष्ट हो गया कि उत्पीडक भूमि कर नीति का क्या फल होता है। सूखे तथा अकालों से ग्रामीण प्रदेशों में शांति तथा व्यवस्था की स्थिति इतनी बिगड़ गई कि ग्रामीण धनिक, नगर निवासियों तथा प्रशासकों के दिल भी हिल गये।

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Published

26-06-2024

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How to Cite

[1]
अदिति ठाकुर 2024. बीसवीं शताब्दी के कृषक आन्दोलन एवं परिणाम. International Journal of Innovations in Science, Engineering And Management. 3, 2 (Jun. 2024), 75–81.